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June 28, 2014

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 50

ऍंथोनीने इस मसलेको पुरी तरह आर या पार करनेका मनही मन ठान लिया था. आखिर उसे अपनी चमडी बचाना जरुरी था. क्या करना है यह उसने मनही मन तय किया था. लेकिन पहले एकबार नॅन्सीके भाईको मिलना उसे जरुरी लग रहा था. वैसे नॅन्सीके क्लासमेटके हैसीयतसे वह उसे थोडाबहुत जानता था. जॉर्जको पुरे मसलेकी कहांतक जानकारी है और यह जानकारी उसे कहांसे मिली यह उसे मालूम करना था. और सबसे महत्वपुर्ण जॉर्जको कही उसपर शक तो नही यह उसे जानना था.

ऍंथोनी जॉर्जके दरवाजेके सामने आकर खडा होगया. वह अब बेल दबानेही वाला था इतनेमें बडे जोरसे और बडे अजीब ढंगसे कोई चिखा. एक पलके लिए तो वह चौंकही गया.... की क्या हूवा. उसका बेल दबानेवाला हाथ डरके मारे पिछे खिंच गया.

मामला कुछ सिरीयस लगता है ...

इसलिए वह दरवाजेकी बेल न दबाते हूए जॉर्जके मकानके खिडकीके पास गया और उसने अंदर झांककर देखा...


... अंदर जॉर्जके हाथमें एक गुड्डा पकडा हूवा था. उस गुड्डेकी तरफ गुस्सेसे और घृणासे देखते हूए फिरसे वह अजिब तरहसे चिखा. ऍंथोनीको उस चिखके बाद वातावरण मे फैला सन्नाटा गुढ और भयानक लग रहा था.


ऍंथोनी अबभी खिडकीसे यह क्या माजरा है यह जाननेकी कोशीश कर रहा था. अंदर चलरहे विधीसे वह उसे कोई जादूटोना होगा ऐसा लग रहा था. लेकिन उसका जादूटोनेपर विश्वास नही था. वह अंदर चल रहा विधी ध्यान देकर देखने लगा...


... अंदर अब जॉर्ज उस गुड्डेसे बोलने लगा, '' स्टिव्हन... अब तू मरनेके लिए तैयार हो जा ''

अचानक जॉर्जने आवाज बदला और मानो वह उस गुड्डेका संवाद, जिसे वह स्टिव्हन समझ रहा था, बोलने लगा, '' नही ... मुझे मरना नही है ... जॉर्ज मै तुम्हारे पैर पडता हू... तुम्हारी माफी मांगता हू ... तु जो बोलेगा वह करनेके लिए मै तैयार हूं ... सिर्फ मुझ पर तरस खा और मुझे माफ करदे ...''

जॉर्ज फिरसे पुर्ववत अपने आवाजमें अपनी वाक्य बोलने लगा, '' तुम मेरे लिए कुछभी कर सकते हो? ... तू मेरे बहनको, नॅन्सीको वापस ला सकता है ?''

'' नही ... वह मै कैसे कर सकता हूं ... वह मेरे पहूंच के परे है ... वह छोडकर तुम कुछभी मांगो... मै तुम्हे वचन देता हूं की वह मै तुम्हारे लिए करुंगा... '' फिरसे जॉर्ज आवाज बदलकर उस गुड्डेके यानीकी स्टिव्हनके संवाद बोलने लगा.

'' तू मेरे लिए कुछभी कर सकता है?.... तो फिर तैयार हो जा... मुझे तुम्हारी जान चाहिए... '' जॉर्ज फिरसे आवाज बदलकर उसका खुदका संवाद बोलने लगा.


खिडकीसे यह सब ऍंथोनी काफी देरसे देख रह था. वह देखते हूए अचानक उसके दिमागमें एक योजना आ गई. उसके चेहरेपर अब एक वहशी मुस्कान दिखने लगी. वह खिडकीसे हट गया और दरवाजेके पास गया. उसने कुछ सोचा और वह वैसाही जॉर्जके दरवाजेकी बेल ना बजाते हूएही वहासे वापस चला गया.


क्रमश:...

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