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February 13, 2014

Hindi Horror Story - बँसवाड़ी की चुड़ैल...

आज से 50-60 साल पहले की है जब गाँवों के अगल-बगल में बहुत सारे पेड़-पौधे, झाड़ियाँ आदि हुआ करती थीं। जगह-जगह पर बँसवाड़ी (बाँस का बगीचा), महुआनी (महुआ का बगीचा), बारियाँ (आम आदि पेड़ों के बगीचे) आदि हुआ करती थीं। गाँव के बाहर निकलने के लिए कच्ची पगडंडियाँ थीं वह भी मूँज आदि पौधों से घिरी हुई।

ऐसे समय में भूत-प्रेतों, चुड़ैलों का बहुत ही बोलबाला था। लोगों को इन अनसुलझी आत्माओं के डरावने अनुभव हुआ करते थे। यहाँ तक कि ये रोएँ खड़ी कर देने वाली आत्माओं के कुछ नाम भी हुआ करते थे जो इनके काम या रहने की जगह आदि पर रखे जाते थे, जैसे- पंडीजी के श्रीफल पर की चुड़ैल, नेटुआबीर बाबा, बड़कीबारी वाला भूत, बँसबाड़ी में की चुड़ैल, सारंगी बाबा, रक्तपियनी चुड़ै़ल, नहरडुबनी चुड़ैल, प्यासनमरी चुड़ैल आदि।

तो आइए आप लोगों को उस चुड़ै़ल से मिलवाता हूँ जो एक आम के बगीचे के कोने में स्थित एक बाँस की कोठी (कोठी यानि एक पास एक में सटे उगे हुए बहुत से बाँस) में रहती थी।

उस समय बहिरू बाबा गबरू जवान थे। चिक्का, कबड्डी, दौड़ आदि में बड़चढ़ कर हिस्सा लेते थे और हमेशा बाजी मारते थे। कबड्डी खेलते समय अगर तीन-चार लोग भी उन्हें पकड़ लेते थे तो सबको खींचते हुए बिना साँस तोड़े बहिरू बाबा लाइन छू लेते थे।

बहिरू बाबा के घर के आगे लगभग 200 मीटर की दूरी पर उनका खुद का एक आम का बगीचा था जिसमें आम के लगभग 15 पेड़ थे और इस बगीचे के एक कोने में बसवाड़ी भी थी जिसमें बाँस की तीन-चार कोठियाँ थीं।

आम का मौसम था और इस बगीचे के हर पेड़ की डालियाँ आम से लदकर झूल रही थीं। दिन में बहिरू बाबा के घर का कोई व्यक्ति दिन भर इन आमों की रखवाली करता था पर रात को रखवाली करने का जिम्मा बहिरू बाबा का ही था। रात होते ही बहिरू बाबा खाने-पीने के बाद अपना बिस्तर और बँसखटिया उठाते थे और सोने के लिए इस आम के बगीचे में चले जाते थे।

एक रात बहिरू बाबा बगीचे में अपनी बँसखटिया पर सोए हुए थे। तभी उनको बँसवाड़ी के तरफ कुछ आहट सुनाई दी। बहिरू बाबा तो जग गए पर खाट पर पड़े-पड़े ही अपनी नजर बँसवाड़ी की तरफ घुमाई, उनको बँसवाड़ी के कुछ बाँस हिलते हुए नजर आ रहे थे पर हवा न बहने की वजह से उनको लगा कि कोई जानवर बाँसों में घुसकर अपने शरीर को रगड़ रहा होगा और शायद इसकी वजह से ये बाँस हिल रहे हैं।

इसके बाद बहिरू बाबा उठकर खाट पर ही बैठ गए और अपनी लाठी संभाल ली। अभी बहिरू बाबा कुछ बोलें इसके पहले ही उन्हें बँसवाड़ी में से एक औरत निकलती हुई दिखाई दी। उस औरत को देखते ही बहिरू बाबा की साँसें तेज हो गई और वे लगे सोचने कि इतनी रात को कोई औरत इस बँसवाड़ी में क्या कर रही है। जरूर कुछ गड़बड़ है।

अभी वे कुछ सोच ही रहे थे कि वह औरत उनके पास आकर कुछ दूरी पर खड़ी हो गई।

बहिरू बाबा तो हक्के-बक्के थे, उनके मुँह से आवाज भी नहीं निकल रही थी पर कैसे भी हिम्मत करके उन्होंने पूछा- तुम कौन हो और इतनी रात को यहाँ क्यों आई हो?

बहिरू बाबा की बात सुनकर वह औरत बहुत जोर से डरावनी हँसी हँसी और बोली- औरत हूँ और इसी बँसबाड़ी में रहती हूँ। बहुत दिनों से मैं तुमको यहाँ सोते हुए देख रही हूँ और धीरे-धीरे मुझे अब तुमसे प्यार हो गया है। मैं सदा तुम्हारी होकर रहना चाहती हूँ।

बहिरू बाबा को अब यह समझते देर नहीं लगी कि यह तो वही चुड़ैल है जिसके बारे में लोग बताते हैं कि इस बगीचे में बहुत साल पहले घुमक्कड़ मदारी (जादूगर) परिवार आकर लगभग तीन-चार महीने रहा था और एक दिन कुछ लोंगो ने उस मदारी परिवार की एक 10-11 साल की बालिका को इसी बसवाड़ी में मरे पाया था और मदारी परिवार वहाँ से अपना बोरिया-बिस्तर लेकर नदारद था और वही बालिका चुड़ैल बन गई थी क्योंकि उसकी हत्या गला दबाकर की गई थी।

बहिरू बाबा अब धीरे-धीरे अपने डर पर काबू पा चुके थे और उस चुड़ैल से बोले- तुम ठहरी मरी हुई आत्मा और मैं जीता-जागता। तुम बताओ मैं तुमको कैसे अपना सकता हूँ।

बहिरू बाबा की बात सुनकर वह चुड़ैल थोड़ा गुस्से में बोली- मैं कुछ नहीं जानती, अगर तुम मुझे ठुकराओगे तो मैं तुम्हें मार डालूँगी। तुम्हें हर हालत में मुझे अपनाना ही होगा।

अब बहिरू बाबा कुछ बोले तो नहीं पर धीरे-धीरे हनुमान चालीसा पढ़ने लगे। वह चुड़ैल धीरे-धीरे पीछे हटने लगी पर बहिरू बाबा को चेतावनी भी देती गई कि हर हालत में उनको उसे अपनाना ही होगा।

एक दिन गाँव में नौटंकी-दल आया हुआ था और बहिरू बाबा अपने दोस्तों के साथ नाच देखने गए हुए थे। जहाँ नाच हो रहा था वहाँ पान की दुकान भी लगी हुई थी। बहिरू बाबा ने वहाँ से पान लगवाकर एक बीड़ा खा लिया और पानवाले से दो बीड़े लगाकर बाँधकर देने के लिए कहा। पानवाले ने दो बीड़े पान कागज में लपेटकर बहिरू बाबा को दे दिए।

नाच देखने के बाद बहिरू बाबा घर आए और सोने से पहले एक बीड़ा पान निकालकर खाए और बाकी एक बीड़े को वैसे ही लपेटकर पाकेट में रख लिए।

उस रात बहिरू बाबा के साथ एक चमत्कार हुआ और वह चमत्कार यह था कि वह चुड़ैल उनके पास नहीं आई।
सुबह बहिरू बाबा जगे तो बहुत खुश थे। उनको लग रहा था कि पान लेकर सोने की वजह से वह चुड़ैल उनके पास नहीं आई। उन्होंने अपने पास रखे उस दूसरे बीड़ा पान को खाया नहीं और दूसरी रात भी उसको जेब में रखकर ही सोए।

उस रात वह चुड़ैल तो आई पर इनके खाट से कुछ दूरी पर खड़ी होकर चिल्लाने लगी। बहिरू बाबा की नींद खुल गई और वे उठकर बैठ गए।

उस चुड़ैल ने गुस्से में कहा- तुम्हारी जेब में पान लपेटा जो कागज है उसको निकालकर फेंक दो।

पर ऐसा करने से बहिरू बाबा ने मना कर दिया। लाख कोशिशों के बाद भी जब वह चुड़ैल अपने मकसद में कामयाब नहीं हुई तो रोते हुए उस बँसवाड़ी की ओर चली गई।

अब बहिरू बाबा को नींद नहीं आई वे फौरन टार्च जलाकर पान लपेटे उस कागज को देखने लगे। उनको यह देखकर बहुत विस्मय हुआ कि पान जिस कागज में लपेटा था वह कागज किसी अखबार का भाग था और उसमें हनुमान-यंत्र बना हुआ था।

अब बहिरू बाबा समझ चुके थे कि पान की वजह से नहीं अपितु हनुमानजी की वजह से उन्हें इस दुष्ट चुड़ैल से पीछा मिल गया था।

दूसरे दिन नहा-धोकर बहिरू बाबा मंदिर गए और वहाँ से एक हनुमान का लाकेट खरीदकर गले में धारण किए और इतना ही नहीं अब रात को सोते समय वे हमेशा हनुमान चालीसा का पाठ करते और हनुमान चालीसा को सिर के पास रखकर ही सोते।

अब बहिरू बाबा फिर से भले-चंगे हो गए थे और अब आम के बगीचे में सोना भी शुरु कर दिए थे। हाँ पर वे जब भी अकेले सुनसान में उस बँसवाड़ी की तरफ जाते थे तो उस चुड़ैल को रोता हुआ ही पाते थे। वह चुड़ैल बहिरू बाबा से अपने प्यार की भीख माँगते हुए गिड़गिड़ाती रहती।

1 comment:

  1. आप जो भी हो...मेरी कहानी के नीचे संदर्भ स्वरूप मेरा नाम और ब्लाग का पता दे दिया करो।। अभी तो बस इतना ही।।

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